भारतीय पुनर्जागरण एवं सामाजिक सुधार के अग्रदूत राजा राममोहन राय(Raja Ram Mohan Roy)
• सामान्य परिचय :- स्वाधीनता संग्राम के जन जागरण में भारतीय इतिहास में अनगिनत व्यक्तियों एवं संस्थाओं का योगदान रहा है। 19वीं शताब्दी में हुए आंदोलनों ने भारतीयों को सामाजिक और धार्मिक चेतना से आंदोलित किया था। भारत की आजादी में यहांँ के चिंतक और दार्शनिकों और समाज सुधारकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
19वीं शताब्दी को भारतीय इतिहास में सांस्कृतिक और बौद्धिक जागरण का काल कहा जाता है।
राष्ट्रीय जागरण की प्रमुख धाराएंँ सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक है। पाश्चात्य शिक्षा और विचारों के प्रभाव, अनेक सुधारकों के प्रादुर्भाव, भारतीय साहित्य और पत्र-पत्रिकाओं के योगदान तथा ईसाइयत के प्रचार ने अनेक सामाजिक और धार्मिक आंदोलनों को भारत में जन्म दिया। 19वीं सदी में सामाजिक, धार्मिक सुधार आंदोलन की शुरुआत बंगाल से राजा राममोहन राय के नेतृत्व में शुरू हुई। 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में इस सांस्कृतिक जागरण के अग्रदूत राजा राममोहन राय और उनके द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज था।
• राजा राममोहन राय (Raja ram Mohan Roy )  :-
• जीवन परिचय :-
 राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1774 को बंगाल के राधानगर ग्राम में एक ब्राह्मण जमींदार के परिवार में हुआ था। राजा राममोहन राय के पिता का नाम रमाकांत तथा माता का नाम तारिणी देवी था।
राजा राममोहन राय की शिक्षा पटना में हुई। जहांँ इन्होंने इतिहास, धर्म, दर्शन और अनेक भाषाओं का अध्ययन किया। 16 वर्ष की आयु में इनका मूर्ति पूजा से विश्वास हट गया और इन्होंने फारसी में " तोहफ़त-उल-मुहावेदीन " नामक पुस्तक की रचना की। इस पुस्तक में मूर्ति पूजा का खंडन और एकेश्रवरवाद की प्रशंसा की है। पुस्तक की रचना से क्रोधित होकर इनके पिता ने इन्हें घर से निकाल दिया। राजा राममोहन राय ने 4 वर्ष तक भारत के विभिन्न स्थानों की यात्रा की तथा पिता द्वारा बुलाए जाने पर वह वापस घर लौटे एवं विवाह किया।
• राजा राममोहन राय ने 24 वर्ष की आयु में अंग्रेजी, उर्दू, फ्रेंच, ग्रीक और लैटिन आदि भाषाओं का अध्ययन किया। कुछ समय पश्चात कुछ रूढ़िवादी ब्राह्मणों की प्रेरणा से 1799 में इन्हें फिर से घर से निकाल दिया गया। पिता की मृत्यु पर के पश्चात ये वापस घर लौटे।
• राजा राममोहन राय ने टैक्स कलेक्टर की नौकरी भी की। 
• उपाधि:- राजा राम मोहन राय को राजा की उपाधि 1830 में मुगल बादशाह अकबर द्वितीय के द्वारा प्रदान की गयी थी। अकबर द्वितीय ने  राजा राममोहन राय को इंग्लैंड भेजा था।
• राजा राममोहन राय को भारत में नवजागरण का अग्रदूत कहा जाता है।
• राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का जनक भी कहा जाता है।
• राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत के प्रथम महापुरुष के नाम से भी जाना जाता है।
• राजा राममोहन राय को भारतीय पत्रकारिता का जनक भी कहा जाता है।
• अंग्रेजों ने राजा राममोहन राय को भारत का "आधुनिक नक्षत्र " कहा है।
• डॉक्टर नंदलाल चटर्जी ने राजा राममोहन राय को " प्रतिक्रिया और प्रगति का मध्य बिंदु " कहा है।
• राजा राममोहन राय को बंगाल में नवचेतना एवं क्रांति का अग्रदूत, भारत में नवजागरण का अग्रदूत,  भारत में सुधार आंदोलनों का प्रवर्तक एवं आधुनिक भारत का प्रथम नेता कहा जाता है। • प्रमुख पुस्तकें :-
(1) प्रिसेप्स ऑफ जीसस (Precepts of Jesus ) :- इस पुस्तक का प्रकाशन राजा राम मोहन राय द्वारा 1820 में किया गया था।
(2.) The guide of peace and happiness ( दी गाइड ऑफ पीस एंड हैप्पीनेस) :- इस पुस्तक में राजा राममोहन राय ने न्यू टेस्टामेंट की समीक्षा की है। इस पुस्तक का प्रकाशन 1820 में हुआ था।
(3.) तोहफ़त-उल-मुहावेदीन :- इस पुस्तक की रचना राजा राममोहन राय ने 1803 में फारसी में की। इस पुस्तक में इन्होंने मूर्ति पूजा का खंडन किया है एवं एकेश्वरवाद की प्रशंसा की है।
(4.) संक्षिप्त वेदांत :- यह वेदांत की एक टीका है।
(5.) एकेश्वरवादीयों को उपहार (Gift to monotheists ) :- इस पुस्तक की रचना राजा राममोहन राय ने 1809 में की थी।
(6.) बंगला व्याकरण एवं बंगाली पद्म 
• राजा राममोहन राय ने वेद और उपनिषदों का बांग्ला भाषा में अनुवाद किया।
• पत्र- पत्रिकाऐं :- राजा राममोहन राय को भारतीय पत्रकारिता का जनक भी कहा जाता है। उनके द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाऐं निम्नलिखित है।
(1) संवाद कौमुदी :- इस पत्रिका का प्रकाशन राजा राममोहन राय ने 1822 में कोलकाता से किया था। यह बंगाली भाषा का समाचार पत्र था। 
(2) मीरात उल अखबार :- इसका प्रकाशन फारसी भाषा में 1822 में कोलकाता से किया गया था। यह फारसी भाषा का प्रथम भारतीय अखबार था।
(3) बंगदूत :- राजा राममोहन राय ने बंगदूत समाचार पत्र का प्रकाशन हिंदी में किया।
• राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित संगठन एवं संस्थाऐं :-
1) आत्मीय सभा :- राजा राममोहन राय ने 1815 में कोलकाता में आत्मीय सभा की स्थापना की। इसका उद्देश्य हिंदू धर्म के एकेश्वरवाद का प्रचार प्रसार करना था।
2) वेदांत सोसाइटी :- वेदांत सोसाइटी की स्थापना राजा राममोहन राय ने 1816 में कोलकाता में की थी।
3) एंगलो इंडियन स्कूल :- राजा राममोहन राय ने 1822 में एंगलो इंडियन स्कूल की स्थापना की। 4) वेदांत कॉलेज :- राजा राममोहन राय ने वेदांत कॉलेज की स्थापना 1825 में कोलकाता में की थी।
5) हिंदू कॉलेज :- राजा राममोहन राय ने 1817 में कोलकाता में हिंदू कॉलेज की स्थापना डेविड हेयर के  सहयोग से की तथा अंग्रेजी भाषा के अध्ययन पर बल दिया।
6) ब्रह्म सभा या ब्रह्म समाज :-ब्रह्म सभा की स्थापना 20 अगस्त 1828 में बंगाल में की गई थी। 1829 में ब्रह्म सभा का नाम बदलकर ब्रह्म समाज कर दिया गया। ब्रह्म समाज ने राजा राममोहन राय के एकेश्वरवाद एवं मूर्ति पूजा में अविश्वास की मान्यताओं का प्रचार प्रसार किया।
• ब्रह्म सभा की प्रथम बैठक बंगाल में 20 अगस्त 1828 को हुई। इसके प्रथम सचिव ताराचंद्र चक्रवती थे।
• उद्देश्य :-
1)  हिंदू धर्म में सुधार लाना।
2) हिंदू समाज में फैली बुराइयों को दूर करना। 3) ईसाइयत के प्रभाव को रोकना।
4) सभी धर्मों में आपसी एकता एकता स्थापित करना।
5) हिंदू धर्म को रूढि़यों से मुक्त कर नवीन स्वरूप प्रदान करना।
6) मूर्ति पूजा का बहिष्कार करना।
7) अवतारवाद का विरोध करना। 
8) ईश्वर की एकता और जीवात्मा की अमरता में विश्वास करना।
9) विधवा विवाह, अंतर्जातीय विवाह, स्त्री शिक्षा और महिलाओं को संपत्ति में उत्तराधिकार दिलाने हेतु भी प्रयत्न करना। 
10) सती प्रथा, बहुविवाह, बाल विवाह, छुआछूत, पर्दा प्रथा और जाति प्रथा का कठोरता से विरोध करना तथा इसे रोकने के प्रयत्न करना।
• ब्रह्म समाज का स्वरूप पूर्णतः भारतीय था।
• ब्रह्म समाज को अद्वैतवादी हिंदुओं की संस्था कहा जाता था। 
• हिंदू धर्म का प्रथम सुधार आंदोलन ब्रह्म समाज द्वारा ही चलाया गया था।
•  राधाकांत देव ने ब्रह्म समाज के सिद्धांतों का विरोध करने हेतु " धर्म सभा " का गठन किया था।
• सामाजिक और धार्मिक सुधार :- 
(1) सती प्रथा का विरोध एवं सती प्रथा कानून का निर्माण :- राजा राममोहन राय ने 1818 में सती विरोधी अभियान प्रारंभ किया। राजा राममोहन राय को सती प्रथा के विरोध की प्रेरणा उनके समय 1811 में उनके भाई जगमोहन की मृत्यु पर उनकी भाभी को जबरदस्ती सती होने पर मिली थी। इस प्रथा को बंद करने के लिए उन्होंने बंगाल में समाजव्यापी आंदोलन चलाया और ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक को सती प्रथा कानून बनाने में सहयोग दिया। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का करोड़ कड़ा विरोध किया। इन्होंने लॉर्ड विलियम बेंटिक के सहयोग द्वारा 1829 में कानून बनवा कर सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित करवाया। सती प्रथा कानून को सर्वप्रथम 1829 में बंगाल में ही लागू किया गया था। 1830 में से मद्रास एवं मुंबई प्रांतों में भी लागू किया गया। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को शास्त्र की आड़ में हत्या की संज्ञा दी है।
(2) सामाजिक कुरीतियों का विरोध :- राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के अलावा बहुविवाह, बाल विवाह, छुआछूत, पर्दा प्रथा और जाति प्रथा का कठोरता से विरोध किया। इसे रोकने के भरसक प्रयत्न किये।
• राजा राममोहन राय ने विधवा विवाह, अंतर्जातीय विवाह, स्त्री शिक्षा और महिलाओं को संपत्ति में उत्तराधिकार दिलाने हेतु भी प्रयत्न किये। आगे चलकर यही ब्रह्म समाज का सामाजिक कार्यक्रम बन गया।
• राजा राममोहन राय ने स्त्रियों को आर्थिक अधिकार देने तथा स्त्री शिक्षा के प्रयास किए इसके लिए उन्होंने (ब्रह्म समाज) ने बालिका विद्यालयों की स्थापना की।
(3) धार्मिक सुधार :- राजा राममोहन राय ने एकेश्वरवाद का उपदेश दिया। उन्होंने वेद, उपनिषद आदि के माध्यम से इस बात को प्रमाणित करने का प्रयास किया। हिंदू धर्म के मौलिक ग्रंथों में एक ही ईश्वर की बात की गई है। उन्होंने निरर्थक आडंबरों का विरोध किया। उनके अनुसार वेदांत दर्शन भी तर्क शक्ति पर आधारित है। राजा राममोहन राय के अनुसार यदि कोई दर्शन या परंपरा तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता तो वे समाज के लिए उपयोगी नहीं है। अतः उन्हें छोड़ने से हिचकिचाना नहीं चाहिए।
• राजा राममोहन राय ने ईसाई धर्म में व्याप्त अंधविश्वासों की आलोचना की तथा विश्व के सभी मतों की मौलिक एकता में विश्वास व्यक्त किया।
• ब्रह्म समाज ने राजा राममोहन राय के एकेश्वरवाद एवं मूर्ति पूजा में अविश्वास की मान्यताओं का प्रचार प्रसार किया।
(4) राजनैतिक जन जागरण :- राजा राममोहन राय ने राजनीतिक जन जागरण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे राजनैतिक क्षेत्र में उदारवादी विचारों के समर्थक थे।राजनीतिक समानता और कानूनी सुधारों के प्रति चेतना जागृत की। उन्होंने भारतीयों में राजनैतिक चेतना उत्पन्न करने का प्रयास किया। राजा राममोहन राय ने राजनीतिक विषयों पर जन आंदोलनों की शुरुआत की। उन्होंने वरिष्ठ सेवाओं में भारतीयकरण, कार्यपालिका का न्यायपालिका  से पृथक्करण, जूरी द्वारा न्याय प्रदान करना, भारतीय एवं यूरोपीय लोगों के बीच न्याय की समानता आदि की मांँग की।
• राजा राममोहन राय ने भारतीय प्रशासन में सुधार के लिए प्रयास किये।
• राजा राममोहन राय ने अंतरराष्ट्रीय घटनाओं में रुचि लेते हुए, तत्कालीन विश्व के देशों में चल रहे स्वतंत्रता एवं जनतंत्र के आंदोलनों का समर्थन किया।
• राजा राममोहन राय प्रथम भारतीय थे। जिन्होंने ब्रिटिश संसद में भारतीय मामलों पर परामर्श किया। 
(5) आर्थिक जनजागरण :- राजा राममोहन राय ने जनसाधारण को आर्थिक शोषण से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। इन्होंने बंगाल के जमीदारों द्वारा कृषकों पर किए जा रहे शोषण का विरोध किया।
बंगाल में जमीदारों से पीड़ित कृषकों की हालत सुधारने के लिए जनता में जागरण का कार्य किया तथा भूमि कर का निर्धारण करने हेतु प्रयास किये। 
• राजा राममोहन राय ने भारतीय वस्तुओं पर निर्यात कर हटाने हेतु प्रयास किए तथा धन का निष्कासन दूर करने के लिए यूरोपियों को स्थाई रूप से भारत में बसने को कहा।
• राजा मोहन राय ने विभिन्न देशों की संसदों में से एक-एक सदस्य लेकर एक अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस बनाने का सुझाव दिया तथा पासपोर्ट प्रणाली के को हटाने का सुझाव दिया।
(6) समाचार पत्र पत्रिकाओं के द्वारा जन जागरण :- राजा राममोहन राय ने समाचार पत्रों की आजादी के प्रति जन जागरण का कार्य किया। राजा राममोहन राय ने अनेक समाचार पत्रों का प्रकाशन भी किया।
(क) संवाद कौमुदी :- इस पत्रिका का प्रकाशन राजा राममोहन राय ने 1822 में कोलकाता से किया था। यह बंगाली भाषा का समाचार पत्र था। 
(ख) मीरात उल अखबार :- इसका प्रकाशन फारसी भाषा में 1822 में कोलकाता से किया गया था। यह फारसी भाषा का प्रथम भारतीय अखबार था।
(ग) बंगदूत :- राजा राममोहन राय ने बंगदूत समाचार पत्र का प्रकाशन हिंदी में किया।
(7) शिक्षा के क्षेत्र में कार्य :- राजा राममोहन राय ने पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली एवं अंग्रेजी भाषा के शिक्षण पर बल दिया। उनका मानना था कि आधुनिक विचारों के प्रचार प्रसार के लिए आधुनिक शिक्षा ग्रहण करना आवश्यक है। राजा राममोहन राय ने कोलकाता में कॉलेज एवं
स्कूलों की स्थापना कर, अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा दिया। इन्होंने वेद एवं उपनिषदों का बांग्ला भाषा में अनुवाद किया तथा बांग्ला व्याकरण का संकलन किया।
• निधन :- राजा राममोहन राय का निधन 17 सितंबर 1835 में ब्रिस्टल ( इंग्लैंड ) में हुआ।
• राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज का नेतृत्व (1817 से 1950 तक) देवेंद्रनाथ टैगोर ने किया।
• महत्वपूर्ण बिंदु :-
👉 राजा राममोहन राय को बंगाल में नवचेतना एवं क्रांति का अग्रदूत कहा जाता है।
👉 राजा राममोहन राय को सुधार आंदोलनों का प्रवर्तक एवं आधुनिक भारत का नेता कहा जाता है।
👉 राजा राममोहन राय ने सामाजिक, धार्मिक, एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया। 👉 राजाराम मोहन राय और उनके ब्रह्म समाज ने जाति प्रथा, अस्पृश्यता, सतीप्रथा, बहुविवाह,  बाल विवाह, पर्दा प्रथा आदि का घोर विरोध किया।
👉 राजा राममोहन राय एवं उनके ब्रह्म समाज ने स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया तथा बालिका विद्यालयों की नींव डाली।
इस प्रकार राजा राममोहन राय तथा उनके ब्रह्म समाज ने हिंदू धर्म में व्याप्त कुरूतियों को समाप्त कर, हिंदू धर्म एवं समाज सुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने राजनीतिक चेतना जागृत कर राष्ट्रीयता की भावना को मुखर किया तथा ईसाईयों के प्रचारवादी प्रहार से हिंदू धर्म एवं समाज की रक्षा की। ब्रह्म समाज ने पहली बार बड़ी प्रबलता के साथ भारतीय समाज की बुराइयों को भारतीयों के समक्ष रखा तथा इनमें सुधार के लिए एक बौद्धिक वातावरण तैयार किया।

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